घर के पीछे वाले कमरे में जहाँ से एक पेड़ झांकता था
वहां चिडियों ने घोसला बनाया है,
पर घर के सभी कमरे खाली हैं।
बहुत कोशिश की पर कुछ साफ़ नही है
लगता है अब ये चश्मा ठीक नही लगता,
इस शहर में तो सभी पहचान वाले रहते थे
कभी मन उदास हो तो घूमने निकल जाता था
शाम होते ही सब ठीक और वापस अपने घर लौट आता था,
आज इनमे से एक भी मेरा घर नही है।
तुम मुझे छोड़ने बस स्टैंड तक आया करती थी
कुछ ख़ास नही बस चंद लम्हात के लिए,
अब शायद धुप पहले से तेज होने लगी है