में..

हथेली सामने रखना
के सब आँसू गिरें उस में
जो रुक जाए गा होंठों पर
समझ जाना के वो हूँ मैं

कभी जो चाँद को देखो
तो तुम यूँ मुस्कुरा देना
के फिर बादल भी आ जाएँ
समझ जाना के वो हूँ मैं

जो चल जाए हवा ठंडी
तो आँखें बंद कर लेना
जो झोंका तेज़ हो सब से
समझ जाना के वो हूँ मैं

जो ज़्यादा याद आऊँ मैं
तो तुम रो लेना जी भर के
अगर हिचकी कोई आए
समझ जाना के वो हूँ मैं

अगर तुम भूलना चाहो मुझे
शायद भुला दो तुम
मगर जब साँस आएगी
समझ जाना के वो हूँ मैं........

आज फ़िर से......

आज फ़िर से मुकम्मल वही जज़्बात हो जाए
हो यारे वस्ल और आंखों में ही रात हो जाए
बैठे हों तसल्ली से हम उनकी बाँहों में
आसमा की चादर हो और हलकी सी बरसात हो जाए
थम जाए मेरी धड़कन रुक जाए वक्त सारा
ये झुकी हुई पलकें मेरी कायनात हो जाए
ना शोर हो दुनिया का ना बाकि कोई आवाज
तेरी वों चाँद की बातें मेरी हर साज़ हो जाए
मिलता नही मुकम्मल जहाँ दुनिया में यूँ हर रोज़
ऐ काश आज ही...मेरी जान रूहे- ख़ाक हो जाए