आज फ़िर से......

आज फ़िर से मुकम्मल वही जज़्बात हो जाए
हो यारे वस्ल और आंखों में ही रात हो जाए
बैठे हों तसल्ली से हम उनकी बाँहों में
आसमा की चादर हो और हलकी सी बरसात हो जाए
थम जाए मेरी धड़कन रुक जाए वक्त सारा
ये झुकी हुई पलकें मेरी कायनात हो जाए
ना शोर हो दुनिया का ना बाकि कोई आवाज
तेरी वों चाँद की बातें मेरी हर साज़ हो जाए
मिलता नही मुकम्मल जहाँ दुनिया में यूँ हर रोज़
ऐ काश आज ही...मेरी जान रूहे- ख़ाक हो जाए

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